पिछले दिनों इंटरनेट पर अमिताभ बच्चन का एक पुराना रेडियो इंटरव्यू सुना। इंटरव्यू में उनकी फिल्मों, शोहरत, पंसद-नापसंद के अलावा उनके पिता हरिवंश राय बच्चन की भी चर्चा हुई। पिता के बारे में पूछे जाने पर अमिताभ का कहना था कि बाबूजी सुबह चार बजे उठते थे। फिर सैर पर जाते, हल्का-फुल्का नाश्ता करते और पढ़ते-लिखते। इसके बाद दो-चार सवाल और हुए और बातचीत ख़त्म हो गई। एक-आध मेल चैक कर, मैं भी बाकी कामों में मसरूफ हो गया मगर एक बात मेरे ज़ेहन में कौंधती रही, ‘बाबू जी सुबह चार बजे उठते थे’। मैं सोचने लगा कि अमिताभ बच्चन कितने गर्व से बता गए कि बाबू जी सुबह चार बजे उठते थे। ईश्वर ने अगर मेरी तकदीर में भी मशहूर होना लिखा है और मेरे बच्चों को भी मुझसे जुड़ा ऐसा कुछ बताना पड़ा तो क्या बताएंगे वो मासूम....बाबू जी आख़िर कितने बजे उठते थे! मेरे होने वाले बच्चों के बाबूजी यानि मैं, तो कभी ग्यारह बजे से पहले उठा नहीं। और जिस तेज़ी से वक़्त और ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है, हो सकता है कि जब तक उनके इंटरव्यू की बारी आए तब तक ग्यारह बजे का समय, सुबह के बजाए दोपहर में शामिल होने लगे। ये सोच कर ही मेरी रूह कांप उठती है कि ऐसा हुआ तो बच्चों को मेरी वजह से कितना शर्मिंदा होना पड़ेगा। बीवी को मैंने तकलीफ बताई तो उसने कहा कि बेफिक्र हो जाओ, कुछ और साल ग्यारह बजे तक सोते रहे तो ऐसी नौबत ही नहीं आएगी! मतलब न आप मशहूर होंगे, और न ही बच्चों को शर्मिंदा होना पड़ेगा।
बीवी ने ये कोई पहली बार तंज नहीं किया और न ही वो कोई पहली है जिसने तंज किया हो। शादी से पहले मां-बाप ने भी कई बार समझाया कि बेटा जल्दी उठा करो। जल्दी उठने के कई फायदे भी बताए। फायदों से तो मैं सहमत था, मगर जल्दी उठने से नहीं। दरअसल ‘अविश्वास’ मेरे चरित्र में कभी रहा ही नहीं। बचपन में किताबों में पढ़ा, जानकारों ने भी बताया और इतने गुणी लोग जब एक ही बात कह रहे हैं तो क्या ज़रूरत है उनकी ईमानदारी और अक्ल पर संदेह करूं। अगर सब कहते हैं कि सूर्य पूर्व से उगता है और पश्चिम में अस्त होता है, तो ठीक ही कहते होंगे। क्रॉस चैकिंग की ज़रूरत क्या है? और मैं पूछता हूं कि सुबह उठने के अपने फायदे हैं तो क्या देर तक सोने का अपना मज़ा नहीं और अगर आनन्द ही अंतिम लक्ष्य है तो विवाद किस बात का? तुम जल्दी उठ कर आनन्द उठाओ, मैं देर तक सो कर उठाता हूं। तुम सूरज उगने से पहले उठो, मैं सूरज डूबने से पहले उठता हूं। तुम मुर्गे की बांग सुनकर उठो, मैं वादा करता हूं कि सोने से पहले बांग देने के लिए उस मुर्गे को ज़रूर उठा दूंगा।
मित्रों, मैं आह्वान करता हूं कि इतना सोओ कि सो-सो कर थक जाओ और उस थकावट को मिटाने के लिए फिर सो जाओ। सोना खोना नहीं है, सोना ही तो असली सोना है। इसलिए इतना सोओ कि लोग तुम्हें सोने की खदान कहने लगे। सोओ, उठो, खाद्यान्न लो और फिर से लम्बी तान लो।
वक़्त आ गया है कि ज़्यादा सोने वाले अलग एक मंच बना लें। नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए लोगों को सोने के फायदे समझाएं। उन्हें बताएं कि जो जग गया है वो कुछ करेगा और ‘कर्म’ ही इक्कीसवीं शताब्दी का सबसे बड़ा संकट है। दुनिया का इतना कबाड़ा ‘न करने वालों’ ने नहीं किया, जितना ‘करने वालों ने’ किया है इसलिए घंटा, दो घंटा फालतू सोने से अगर दुनिया बर्बाद होने से बचती है तो हर्ज़ क्या है?
उल्टे दुनिया को ऐसे लोगों को धन्यवाद देना चाहिए जो देर तक सोते हैं। अगर ये लोग भी रातों-रात सुधरने की ठान लें तो सुबह उठने की जिस आदत पर तुम इतराते फिरते हो, उसकी मार्केट वैल्यू क्या रह जाएगी। प्रिय, अच्छाई के मामले में अल्पसंख्यक होना ही बेहतर है। बुद्धिजीवियों की कद्र अपनी काबिलियत की वजह से नहीं, समाज में मूर्खों की अधिकता के कारण है। जो बुद्धिजीवी मूर्खों को गाली देते नहीं थकते, उन्हें तो उनके चरण धो कर पीने चाहिए। चरण धुलवाने की मेरी कोई ख़्वाहिश नहीं। ना ही मैं ये चाहता कि तुम किसी तरह का दूषित जल पी प्राण त्यागो। भगवान के लिए मुझे बस सोने दो। रही बेटे के जवाब की चिंता, तो बीवी ठीक ही कहती है कि यूं ही सोता रहा तो उसकी नौबत ही नहीं आएगी!
सोमवार, 1 जून 2009
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5 टिप्पणियां:
bhai waah
kya kehne !!
:) :)
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
क जमाने में हम भी चद्दर तान के सोते थे ....पेशा ,शादी ओर बच्चे के बाद भाई आँख अपने आप खुल जाती है .मशहूरी की चिंता मत करो ....कुछ सालो बाद लोग नींद लेने के लिए क्रेश कोर्स ज्वाइन करेंगे ...बेचारे सॉफ्टवेयर वालो की आँखे देखो अभी से भरी जवानी में आँखों के नीचे काले घेरे नजर आयेंगे
आपने बहुत अच्छा लिखा है....
सोना -खोना- होना और फिर सोना, क्या कहने आपके
बस यही कहानी अपनी है। दिल की बात कह दी आपने।
ha ha ha....kismat apni apni..bhai ham to tarsa jate hai subha na uthane ko :(
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