दौलत और शोहरत की मुझे बरसों से तमन्ना है। वैसे भी इंसान उसी चीज़ की तमन्ना करता है जो उसके पास नहीं होती। यूं तो अक्ल भी मेरे पास नहीं है, मगर वो आ जाए ऐसी कोई ख़्वाहिश भी नहीं। ख्वाहिश, पैसे और पॉपुलेरिटी की है मगर हासिल कैसे करूं, तय नहीं कर पा रहा। मौजूदा तनख्वाह में, आगामी दस सालों के लिए, सालाना दस फीसदी की बढ़ोतरी जोड़ूं, और उसमें से खर्च घटाऊं, तो कुल जमा कुछ हज़ार रूपये ही मेरे बचत खाते में बचेंगे और इसी अनुपात में लोकप्रियता बढ़ी तो इन दस सालों में तीस-चालीस नए लोग ही मुझे जान पाएंगे। मतलब ये कि मौजूदा पेस पर दस सालों में कुछ हज़ार रूपये और अपनी प्रतिभा से कायल या घायल हुए तीस-चालीस लोगों की कुल जमा-पूंजी ही मेरे पास होगी, जो मुझे कतई मंज़ूर नहीं है। मैं चाहता हूं कि जल्द ही मेरे पास लाखों रूपये हों, करोड़ों दीवाने हों, जिसमें भी दीवानियों की संख्या ज़्यादा हो, टीवी-अख़बार, हर जगह मेरा इंटरव्यू हो, देश का हर बच्चा-बूढ़ा मेरा ही नाम लेकर सोए, और हर जवां लड़की मेरी ही तस्वीर देख जागे।
जब मैंने अपनी ये ख्वाहिश मित्र को बताई तो उसने कहा कि इसका एक ही तरीका है, किसी रिएलिटी शो में चले जाओ। टीवी पर मेनली तीन तरह के रिएलिटी शो आते हैं। गाने का, नाचने का या अन्य किसी नायाब किस्म की मूर्खता का। सोचने लगा कि मैं इनमें से किस रिएलिटी शो में जा सकता हूं। जहां तक गाने का सवाल है, उससे जुड़ा मेरा और उनका, जिन्होंने मेरा गाना सुना, अनुभव अच्छा नहीं रहा। मुझे याद है जब पहला इंडियन आइडल देख मुझे भी रातोंरात सिंगर बनने का जोश चढ़ा था। सुबह चार बजे मैंने भी रियाज़ शुरू किया मगर क्या देखता हूं। पड़ौस के अंकल हाथ में फायर एक्सटिंग्विशर लिए दरवाज़ा तोड़ते हुए हमारे घर के अंदर घुस आए। मैं एकदम घबरा गया। मुझे लगा शायद कोई मानव बम है। इससे पहले कि मैं उनसे कुछ पूछता, वो बोले-कहां लगी है आग? मैंने कहा-कहीं नहीं। मगर अभी तो मुझे चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी। मैंने कहा-शायद आपको कुछ ग़लतफहमी हुई है। वो चिल्लाने की नहीं, मेरे गाने की आवाज़ थी। अंकल बोले-बेटा! ग़लतफहमी मुझे नहीं तुम्हें हुई है, वो गाने की नहीं, चिल्लाने की ही आवाज़ थी!
इससे पहले कॉलेज में भी एक बार ऐसा हादसा हुआ था। मित्रों के प्रोत्साहन पर, बाद में पता चला कि उन्होंने मज़े लिए थे, मैंने सालाना फंक्शन में गायन प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। जैसे ही मैंने गाना शुरू किया जनता तो जनता वहां मौजूदा कौओं तक ने अपने कान बंद कर लिए, बाग के फूल मुरझाने लगे, कुत्ते भौंकने लगे और माइक में शॉर्ट सर्किट के बाद धुंआ निकलने लगा। कार्यक्रम संचालक ने बीच गाने में आकर मेरे कान में कहा कि हम वादा करते हैं कि पहला पुरस्कार तुम्हें ही देंगे, मगर भगवान के लिए अभी-इसी वक़्त गाना बंद कर दो।
इसी तरह के कुछ और वादों से आहत हो मैंने तय किया कि संगीत की शिक्षा लूंगा। इसी सिलसिले में एक गुरूजी के पास पहुंचा। अपनी महत्वाकांक्षाएं सामने रख उनसे शिक्षा देने का आग्रह किया। उन्होंने पहले नमूना पेश करने को कहा। नमूने की मैं दूसरी पंक्ति ही सुना रहा था कि उन्होंने हाथ उठा चुप होने का इशारा किया। मुझे लगा चावल का एक दाना देख उन्होंने पूरी हांडी का अंदाज़ा लिया है। गुरूजी कैसा लगा-मैंने बेसब्री से पूछा। गुरूजी (कुछ सैकिंड पॉज़ के बाद)-बेटा, तुम में प्रतिभा तो बहुत छिपी है मगर मानवजाति की भलाई इसी में है कि तुम उसे छिपा कर ही रखो!
इसके बाद मैंने तय किया कि अपनी गायन प्रतिभा के रहस्य को कभी उजागर नहीं करूंगा। लिहाज़ा ये ऑप्शन मेरी लिए ख़त्म हो गया। रही डांस की बात। तो लाख चाह कर भी उस पर चांस मारने की हिम्मत नहीं पड़ती। डांसने के लिए पैर चलने बहुत ज़रूरी है। कुछ-एक नचनिया टाइप मित्रों ने सिखाने की कोशिश भी की मगर उन्हें भी लगा कि ‘भारी न होने के बावजूद’ हिलने के मामले में मेरे पांव अंगद के समान हैं।
कुल मिलाकर दोस्तों, तय नहीं कर पा रहा हूं किस रिएलटी शो में जाऊं। सिगिंग-डांसिंग मेरे बस की नहीं है। आख़िर में यही लगता है कि बेमतलब बातों की अंतहीन सड़क पर आवारा-निकम्मे दोस्तों के साथ बेहिसाब दौड़ने का मेरे पास बेशुमार अनुभव है। पांव चलें न चलें, ज़बान खूब चलती है। कभी ज़बान चलाने का कोई रिएलिटी शो हो तो बताइएगा, फिर कोशिश करेंगे।
बुधवार, 17 जून 2009
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13 टिप्पणियां:
व्यंग्य लेखन का
रियलिटी शो होने वाले हैं
उसमें अवश्य ही आपकी रचनाएं
सिंगिंग डांसिंग लाफिंग करेंगी
वो भी तो नाम होगा
छपा हुआ
।
नवभारत टाइम्स में आज इस व्यंग्य लेखन के लिए बधाई। कांटे की बात ने एक काम तो किया है, शब्दों में कांटे कहां कहां होते हैं, इस कला को बखूबी उजागर किया है।
ha ha ha ha
bahut umda !
बढिया!! कोशिश जारी रखो.....रास्ता निकल आएगा.....:)
बढ़िया लिखा है मित्र....आनंद आया पढने में....
gud
सास बहू के सीरियल में जाकर इस आवाज से उनके लड़ाई झगड़े और महफिलें बंद करके पति प्रजाति का उद्धार करो महाराज। फेमस भी हो जाओगे और दुआएं भी खूब पाओगे। सीमा पर भी शीत युद्ध के दौरान काम आ सकती है। गुरू जी गलत कह रहे थे कि अपनी प्रतिभा छुपा कर रखो, अरे यार गलत वक्त पर सही जगह होने से ये प्रतिभा तो मानव जाति का भला ही करेगी।
"मैंने गाना शुरू किया जनता तो जनता वहां मौजूदा कौओं तक ने अपने कान बंद कर लिए, बाग के फूल मुरझाने लगे, कुत्ते भौंकने लगे और माइक में शॉर्ट सर्किट के बाद धुंआ निकलने लगा"
बात दरअसल आत्म विश्वास की है मित्र. अगर इन्हीं लक्षणों से घबराकर लोग गाना छोड़ देते तो हिमेश रेशमिया और अनु मलिक जैसे गायकों से आप और हम अपरिचित ही रह जाते.
mazedaar likha hai :)
kuch din intezaar kijiye, jis tarah se reality show aa rahe hain tv par ek na ek din aisa show jaroor aayega jismein aapki pratibha ka upyog ho...tak tak is pratibha ko duniya se chhupa kar hi rakhiye :)
तीन ऑप्शन दे रहा हूँ...
स्प्लिट -विला ,
एम् टीवी रोडी
बिग बॉस
जल्दी कीजिये फार्म भरने की आखिरी तारीख ३० जून है....हिंदी अंग्रेजी गलियों का क्रेश क्रोस अनिवार्य शर्त है.
...
बेटा, तुम में प्रतिभा तो बहुत छिपी है मगर मानवजाति की भलाई इसी में है कि तुम उसे छिपा कर ही रखो!
इस लाइन के लिए तो १०० नंबर.. वैसे सुबह सुबह आपको दैनिक भास्कर में पढ़ा है.. भूलवश ऑर भूलवंश पसंद आया..
durbhagya ,is duniyawalo ka..aap ke madhur sangeet ka anand uthane se wanchit rah gaye ,bechare ;)
मज़ेदार कटाक्ष
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