मैं चेतावनी जारी करता हूं कि मेरे आस-पास जितने भी लोग हैं, सावधान हो जाएं। इंडियन टीम का तो मैं कुछ नहीं बिगाड़ सकता मगर मेरी रेंज में आने वालों ने अगर बद्तमीज़ी की, तो उनकी खैर नहीं। किराने वाला जान ले कि राशन देने में उसने ज़्यादा वक़्त लगाया तो अपने सार्वजनिक जुलूस का वो खुद ज़िम्मेदार होगा। वहीं दूध वाला एक से ज़्यादा घंटी न बजाए, कचरे वाला जल्दी आ नींद का कचरा न करे, पड़ोसी घर के आगे कार न लगाएं और दफ्तर की राह के सभी राहगीर चलते वक़्त तमीज़ का परिचय दें, वरना वो मेरे भन्नाए सिर और खौलते खून की बलि चढ़ जाएंगे।
दोस्तों, टीम इंडिया ने जितनी बार हार कर अपना मुंह काला करवाया, मां काली की कसम, उसे हारता देख उतनी ही रातें मैंने भी काली की। दसियों बार चेहरे पर पानी के छींटें फेंक, तेज़ पत्ती की चाय पी, खुद को जैसे-तैसे इस उम्मीद में जगाए रखना कि प्यारे, आज वो होगा जो अब तक नहीं हुआ, और फिर वही होना जो अब तक होता आया है, बड़ी तकलीफ देता है। और ये तकलीफ, सौजन्य टीम इंडिया, एक नहीं, तीन-तीन बार सहनी पड़ी। पिछले तेईस साल से खुद को बाईस का बताने वाले लौंडे जब गेंद के पीछे भागते थे तो लगता था मानो ये बाईस के नहीं एक सौ बाईस साल के हैं। तेज़ गेंदबाज़ों की गेंद हाथ से छूटने और बल्लेबाज़ तक पहुंचने में इतना वक़्त लेती थी कि बल्लेबाज़ चाहे तो अलार्म लगा कर सो जाए, और जब उठे, तो स्नूज़ लगा कर फिर सो जाए!
भाई लोगों, कहीं तो उम्मीद छोड़ी होती। वेस्टइंडीज़ के खिलाफ तुम पहले बल्लेबाज़ी कर हारे तो अफ्रीका के खिलाफ बाद में। इंग्लैंड के तेज़ गेंदबाज़ों से पिटे तो अफ्रीका के स्पिनरों से। न तुम तेज़ गेंदबाज़ी खेल पाए, न स्पिन और ये गली क्रिकेट तो था नहीं जो तुम्हें कोई अंडरआर्म गेंद फेंकता। हार पर तुमने जितने बहाने बनाए, उसके आधे भी रन बनाए होते और विज्ञापनों में जितनी देर दिखाई दिए, उसका दसवां हिस्सा भी क्रीज पर दिखते, तो ये हश्र नहीं होता। ‘कान महोत्सव’ तो तुम शायद कभी नहीं गए होंगे मगर तुम्हारे झुके कंधे और ढीली फील्डिंग देख यही लगा कि तुम ‘थकान महोत्सव’ में शिरकत करने आए हो। तुमसे बढ़िया तो महिला टीम निकली जो सेमीफाइनल तक तो पहुंची। शर्माओ मत, बता दो, अगर वाकई थक गए हो तो वेस्टइंडीज़ दौरे पर तुम्हारी जगह महिला टीम भेज देते हैं। वैसे भी मर्दों को औरतों की तरह खेलते देखने से अच्छा है, क्यों न सीधे उन्हें ही खेलते देखा जाए।
शुक्रवार, 19 जून 2009
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8 टिप्पणियां:
शुक्र मनाओ पहले बाहर हो गये... तीन (semifinal, final or super 8 का लास्ट ्मैच) और रात काली होने से बचा ली...:)
अरे, बहुत दुखी दिख रहे हो. कड़क पत्ती की ज़रुरत दस दिन बाद फिर से होगी. अब की बार सुना है वेस्टइंडीज में मैच है. वैसे भी वेस्ट इंडीज कम से कम एक मैच ज्यादा खेलेगी इन लोगों से. अबकी बार वे लोग थकेंगे. अगर फाइनल भी वेस्टइंडीज खेले तो और थक जायेगी. फिर तो अपने टीम की जीत पक्की.
इसलिए पेपर वाले, दूध वाले, जनरल स्टोर्स वाले को चेतावनी देने की प्रैक्टिस अभी से शुरू हो जानी चाहिए. और कड़क पत्ती वाली.......
ये लो ! ये कोई पहली बार थोड़े न हुआ है अब तो आदत सी है ... :)
मत पूछिए भाई...क्यों जख्मो पे नमक छिड़क रहे है ..
are honi ko kaun taal sakta hai..dhoni bhi nahi.
भयंकर भन्नाए हुए हो?? :)
कहीं टिप्पणी न करने वालों की भी वाट न लगा दो, इसलिए किये दे रहे हैं.
जो मजे हैं हार के
मिलीभगत व्यौहार के
नोटों के त्यौहार के
चीखकर किए वार के
वो सब एक जीत पर
वार दूं
हारने वाली टीम की
थकान उतरे न उतारे
चलो मैं उनकी फिक्सिंग की
आरती उतार लूं।
टिप्पणी देर से इसलिए की क्योंकि देखना चाह रहा था कि गुस्सा इतना तो नहीं कि टिप्पणी न करने वालों पर ही खुन्नस निकालो। शुक्र है अब सब ठीक है।
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