इंसानों की तरह समस्याएं भी आजकल बेहद महत्वकांक्षी हो गई हैं। कल ही एक समस्या मिली। कहने लगी कि इतनी भीषण होने के बावजूद मेरी कोई पूछ नहीं। कहीं कोई चर्चा नहीं। आत्मसंशय होने लगा है। सोचती हूं उतनी विकराल हूं भी या नहीं। ऐसी लाइमलाइटविहीन ज़िंदगी से तो अच्छा है सुसाइड कर लूं। मैंने टोका-इतनी नेगटिव बातें मत करो। ये बताओ तुम हो कौन? समस्या क्या है? वो बोली-मेरा नाम पानी की समस्या है। कहने को तो मैं खुद समस्या हूं। मगर मेरी समस्या अटैंशन की है।
मैंने पूछा-मगर तुम अटैंशन चाहती क्यों हो। वो तपाक से बोली-ओबिवियसली डिज़र्व करती हूं इसलिए। हैंडपंप में आती नहीं। कुंओं से गायब हो चुकी हूं। नदियों में सिमट चुकी हूं। जब कभी टैंकर में लद किसी मोहल्ले में पहुंचती हूं एक-एक बाल्टी के लिए तलवारें खिंच जाती हैं। क्या अख़बारों में सिटी पन्नों में छप गुमनामी के अंधेरे में मर जाने के लिए मेरा जन्म हुआ है। मेरा भी अरमान है टीवी पर आऊं। प्राइम टाइम में मुझ पर डिस्कशन हो। आख़िर क्या कसूर है मेरा?
मैंने कहा डियर वजह बेहद सीधी है। जिस तरह सिर्फ अच्छा दिखने मात्र से कोई मॉडल नहीं बन जाता। मॉडल बनने के लिए चेहरे का फोटोजनिक होना ज़रूरी है। या हीरो बनने के लिए अच्छी स्क्रीन प्रजेंस होनी ज़रूरी है। उसी तरह समस्या सिर्फ समस्या होने भर से पर्दे पर आने की हक़दार नहीं हो जाती। उसमें नाटकीयता लाज़मी है।
पर्दे पर आने का तुम्हारा चांस तब बनता है, जब कोई आदमी पानी की टंकी पर चढ़ जाए और कहे कि चौबीस घंटे के अंदर मेरे मोहल्ले में पानी नहीं आया तो मैं जान दे दूंगा। ऐसे में महापौर से पूछा जा सकता है लोग जान देने पर उतारूं हैं और आप कुछ कर नहीं रहे। इस पर महापौर कहे कि जो आदमी टंकी पर चढ़ा है वो विपक्षी पार्टी का कार्यकर्ता है। और आप कैसे कह सकते हैं कि मैंने कुछ किया नहीं। जिस टंकी पर चढ़ कर वो जान देने की धमकी दे रहा है वो मेरी ही बनवाई हुई है। और चाहें तो देख लें वो टंकी पूरी तरह फुल हैं। ऐसे में पानी की समस्या की बात सरासर झूठ है।
ऐसी सूरत में पानी की समस्या पर चर्चा हो सकती है। लेकिन ध्यान रहे कि कोई पानी की टंकी पर चढ़े तब, पेड़ पर नहीं। पेड़ पर चढ़ना कोई विज़ुअली रिच नहीं है। और खाली पानी की समस्या....उसकी तो कोई औकात ही नहीं है।
रविवार, 7 जून 2009
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6 टिप्पणियां:
ha ha ha ha
HA HA HA HA
समस्या की समस्या गंभीर है।
समस्या से कहिये की थोड़े दिनों की बात है,, उसके बाद सभी उसे ही ढूंढते नजर आयेंगे....
टेली ही सत्य है. समस्या तो मिथ्या है. बिना टेली प्रजेंस के समस्या दो कौड़ी की. ठगी की कहानियों का बाजा बजा दो. क्रिकेट टीम एकजुट नहीं है, इससे बड़ी समस्या और क्या हो सकती है. फोटोजेनिक समस्या ही असली समस्या होती है.
असल में फोटोजेनिक से भी ज्यादा समस्या का 'नोटोजेनिक' होना बेहद ज़रूरी है. ऐसे में पानी की समस्या? ना ना..
हमारे यहाँ तो समस्या पर तो पानी फेरने की परंपरा है पर यहाँ तो पानी की ही समस्या है :)
boye bij babbol ka ..aam khan se hoye ?
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