बुधवार, 10 जून 2009

विज्ञापन प्रदेश की लड़कियां!

टीवी पर इन दिनों मोटरबाइक का एक विज्ञापन आ रहा है जिसमें दिखाया गया है कि कैसे एक लड़का अपनी गर्लफ्रेंड को गुड नाइट का एसएमएस करने की बजाय नई मोटसाइकिल उठा उसे गुडनाइट कहने जाता है। लड़की भी मोटरसाइकिल देखते ही उस पर फिदा हो जाती है। विज्ञापन का संदेश साफ है। गर्लफ्रेंड को इम्प्रैस करना है तो आज ही हीरो गुंडा कम्पनी की मोटरसाइकिल ले आएं। मोटरसाइकिल से तो मैं प्रभावित नहीं हुआ मगर उस पर फिदा हो जाने की लड़की की अदा का ज़रूर कायल हो गया।

विज्ञापन प्रदेश में रहने वाली ज़्यादातर लड़कियों का मैंने यही चरित्र देखा है। ये ज़रा भी डिमांडिंग नहीं होतीं। लड़का डेढ़ सौ सीसी की बाइक चलाए तो उस पर लट्टू हो जाती हैं, सवा सौ सीसी की बाइक ले आए तो भी फ्लैट हो जाती हैं। गाड़ी के इंजन का इनके पिकअप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ये आदतन सैल्फ स्टार्ट होती हैं। प्रभावित होने के लिए कोई शर्त नहीं रखतीं। बंदरछाप लड़का कबूतरछाप दंतमंजन भी लगाता है तो उसे दिल दे बैठती हैं। ढंग का डियो लगाने पर उसके कपड़े फाड़ देती हैं। आम तौर पर लड़कियों को पान-गुटके से भले जितनी नफरत हो लेकिन विज्ञापन बालाएं उसी को दिल देती हैं जो ख़ास कम्पनी का गुटका खाता है। मानो बरसों से ऐसे ही लड़के की तलाश में हो जो जर्दा या गुटका खाता हो।

दोस्तों, मैं जानना चाहता हूं कि ऐसी परमसंतोषी लड़कियां दुनिया के किस हिस्से के कौन से टापू पर रहती हैं। जहां भी हैं उनसे मिल उनके ‘यथास्थिति मोह’ का कारण जानना चाहता हूं। उनसे पूछना चाहता हूं कि हर छोटी-मोटी चीज़ पर लट्टू हो जाने की तत्परता उनके संस्कारों का हिस्सा है, या फिर उनका उत्पाद प्रेम। अपने लिए कुछ तो स्टैंडर्ड सैट करो यार। बीएमडब्ल्यू पर भी जान छिड़कती हो और बिमला छाप बीड़ी पर भी। प्लास्टिक की कुर्सी देख भी डांवाडोल होती हो और पान मसाले पर भी।


हसीन लड़कियों को स्कूल से घर और घर से स्कूल हमने भी कम नहीं छोड़ा...उन्हें पटाने की आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और ऐलोपैथिक विधियों पर हमने भी कम रिसर्च नहीं की...मगर प्लास्टिक कुर्सी में ऐसा कौन सा हुस्न छिपा है, ऐसी क्या रूमानियत घुसी है जो तुम उसके मालिक को दिल दे बैठती हो। बताओ प्रिय, मैं दुनिया के तमाम असफल प्रेमियों के प्रतिनिधि के नाते पूछता हूं.... आज तुम्हें जवाब देना ही होगा। तुम विज्ञापन में इतनी सहज उपलब्ध हो तो असल ज़िंदगी में क्यों नही। क्या कॉलेज के दिनों में मेरे पास सवा सौ सीसी की बाइक नहीं थी। क्या तुम जैसियों का पीछा करते हुए मैंने हज़ारो लीटर ईंधन नहीं फूंका। कर्कश हॉर्न बजाते हुए क्या तुम्हारी गलियों के सैंकड़ों चक्कर नहीं काटे। चक्कर काटने के इसी चक्कर में क्या तुम्हारे मोहल्ले वालों से नहीं पिटा। और इस सबका जवाब हां है तो बताओ प्रिय, पटने को लेकर तुम्हारी व्यवहार भिन्नता की वजह क्या है। जिस अदा पर तुम विज्ञापन में पट जाती हो, असल ज़िंदगी में तुम क्यूं उसी से कट जाती हो। तुम्हारा कटना मेरे दिल का फटना है।

प्रिय, मैं गुज़ारिश करता हूं कि अपने प्रिय उत्पादों की तुम आज ही एक सूची जारी करो। बताओ कि मुझे इस कम्पनी का पंखा, उसकी झाड़ू, इसकी कुर्सी, इनवर्टर, कार, स्कूटर पसंद है। इससे न सिर्फ तुम्हारी लोकतांत्रिक और पारदर्शी छवि बनेगी बल्कि देश का युवा भी जान जाएगा कि लड़की पटाने के लिए उसे क्या करना है। दोस्तों से प्रेम पत्र लिखवाने के बजाए वो शोरूम मे जा प्रोडक्ट्स की ईएमआई पूछेगा। सोचो ज़रा...ऐसा हुआ कितना सुलभ हो जाएगा इक्कीसवीं सदी का प्रेम। लड़के की लड़की से आंख मिली। लड़के ने पूछा-दीदी, क्या आप फ्री हैं? लड़की ने कहा दस लड़कों की एप्लीकेशन लगी है, कुछ तय नहीं किया, फ्री ही समझो। लड़का-तो बताओ ऐसा क्या खरीदूं कि तुम सुध-बुध खो मेरी हो जाओ। लड़की-मुझे धूल-धक्कड़ कम्पनी की फूलझाड़ू पसंद है और अल्सर कम्पनी का फोर स्ट्रोक स्कूटर। लड़का-अरे अल्सर कम्पनी का स्कूटर तो मैंने कल ही खरीदा है। रही बात फूलझाड़ू की तो पिता जी का किराना स्टोर है। अपनी होने वाली बहू को वो फूलझाड़ू तो मुफ्त दे ही देंगे। दोस्तों, अगर ऐसा हुआ तो आनी वाली नस्लें फूलझाड़ू के रास्ते अपना प्रेम परवान चढ़ाएंगी और एक झाडू प्रेम की राह में आने वाले सारे जाले हटाएगी।

21 टिप्‍पणियां:

Abhishek Ojha ने कहा…

हा हा !
बिलकुल सही... ये लिस्ट और इन लड़कियों का पता चले तो हमें भी बताइयेगा :)

कुश ने कहा…

जिस अदा पर तुम विज्ञापन में पट जाती हो, असल ज़िंदगी में तुम क्यूं उसी से कट जाती हो। तुम्हारा कटना मेरे दिल का फटना है।
Best lines of the post!

aaj subah aapko dainik bhaskar mein padhna sukhad raha..

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

अभिषेक जी मोटर साईकिल लेकर चले आइये

बंदी इंतजार में है

मौसम वैसे भी आज खुशगवार हो गया है(((((


धांसू है

बसंत आर्य ने कहा…

दिल खुश हो गया ये पढकर नीरज भाई. आपमे धार है

Unknown ने कहा…

bahut khoob!
bahut hi khoob!
bahut bahut khoob!

Shiv ने कहा…

अद्भुत
भाई, आपको व्यंग लिखकर मोक्ष प्राप्त होता है और हमें आपका लिखा पढ़कर.

बेनामी ने कहा…

हमेशा की तरह, मज़ा आ गया।
आपकी शैली बहुत पसंद आती है।

रंजन (Ranjan) ने कहा…

अरे अभी तो इसे नवभारत टाइम्स में पढ़ा था.. बहुत अच्छा.. मजा आया..

जितेन्द्र सिंह यादव ने कहा…

बहत बढियां लिखा है आपने. आज के आधुनिक प्यार के यही मायने हैं.

शरद कोकास ने कहा…

भाई बाईक पर तो लडकियाँ बैठती भी हैं लेकिन शेविंग क्रीम के विज्ञापन मे लडकियों का क्या काम है मुझे समझ नही आया

Nitish Raj ने कहा…

नीरज जी आज के नवभारत के संपादकीय पेज पर पहले ही पढ़ लिया था। इस पर और एक और विष्य है उस पर लिखना चाह रहा था पर आपने बाजी मार ही ली। अच्छा लिखा है बहुत अच्छा।

अनूप शुक्ल ने कहा…

मजा आ गया! शिवकुमार मिश्र की टिप्पणी हम भी दोहरा रहे हैं!

डॉ .अनुराग ने कहा…

सच में ऐसी नॉन डिमांडिंग लड़किया पहले तो न थी......रामदौस ने खामखाँ पान मसाला बंद करवाके कितनी प्रेमकथाये अकस्मात ही बंद करवा दी.....वो पट्टीदार कच्छे जो हर घर की शान थे .....अक्सर राष्टीय पोशाक की माफिक हर छत पे सूखते नजर आते थे .अब उनकी जगह ब्रांडेड कल्फुल अंडरवियरो ने ले ली है ...बस समस्या दिल टूटने पर दूसरी जगह एंट्री मारने की है....अगली को फलां डियो पसंद हो तो....

Arun Arora ने कहा…

ये सारी लडकिया महा झूठी है हमने इनके चक्कर मे आकर मोटर्साईकल ले ली भई लेकिन भाई मजाल है एक भी आई हो , महीनो हम खाली सडको पर लिफ़्ट सर्विस मुहैया कराने के लिये लीटरो पेट्रोल फ़ूक चुके है . अब तो मोटर्साईकल बेचने के चक्कर मे है कोई खरीदार हो तो बतायेगा :)

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

:) :) Nice Article

Neeraj Badhwar ने कहा…

कुछ दोस्तों ने यहां भी अपने राय दी है।


http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4635504.cms

Batangad ने कहा…

हसीनों के नखरे हैं जनाब समझ में कहां आते हैं

Rachna Singh ने कहा…

even if you get one will you be willing to { or would be able to } wed her ?? and if not then why desire her . some things look good but what all looks good cant be touched

अनिल कान्त ने कहा…

ha ha ha
mazaa aa gaya ...chhaa gaye guru

Priyanka Singh Mann ने कहा…

neeraj ji dekh rahi hun ki mahilaon ne is vyangya par tippani karne main kanjusi ki hai..mujhe mila kar bas teen, par main khub daad doongi..bahut hi accha!! aap soch nahi sakte kitne thahake laga kar hansi hoon main..aur rachanon ka ab intezzar rahega !!

ऋषभ कृष्ण सक्सेना ने कहा…

are bhai neeraj, pahlee baar aapke blog par aayaa hoon... par aanaa saarthak ho gaya.. bahut mazedaar.. college ke dinon kee yaad dilaa dee aapne.. jab hum chaar doston ke beech iklautee bike thee aur use hee shift baandhkar istemaal karte the ki koi to pat jaaye.. kambakht kisee ne naheen dekhaa... aur patee kaun jisne khud humein paidal dekhkar apne bajaj scooty par lift dee... waakai inkee mahimee hum aap tuchchh praanee naheen samajh sakte..
waise mazaa aa gayaa.